Monday, July 27, 2009

नेता / समाज सेवकों की सुरक्षा

हमारी सामाजिक व संवेधानिक व्यवस्था के अनुसार समाज अपने में से एक रहनुमा अर्थात एक नेता का चुनाव करता है जो कि उन्हें आगे की राह दिखाते हुए उनका पथ प्रदर्शक हो ! हर जागरूक सामाजिक नेता का फर्ज होता है कि वह अपने समाज की सुरक्षा करे , लेकिन उल्टे समाज के पैसे से ही आज उन पथ प्रदर्शक कहे जाने वाले नेताओं की सुरक्षा हो रही है ! जो नेता काली वर्दीधारी ब्लैक कैट कमांडो से घिरकर चलेगा वह अपने समाज की क्या सेवा व सुरक्षा करेगा बल्कि वह स्वयं ही समाज के द्वारा अपनी सुरक्षा करा रहा है ! पहले तो यह सोचने की बात है कि जब संविधान ने सभी लोगों को बरावर माना है तो फिर यह विशिष्ट व्यक्ति शब्द कहाँ से आ गया , दूसरी बात यह है कि जब यही विशिष्ट व्यक्ति आधी सुरक्षा को अपने ऊपर ले लेंगे तो आम जनता की सुरक्षा कैसे होगी और कोन करेगा ! देखा जाय तो ब्लेक कैट कमांडो के द्वारा उन लोगों की सुरक्षा नही होती बल्कि यह आज एक स्टेटस सिम्बल बन गया है ! क्या इंदिरा गाँधी , राजीव गाँधी और जनरल वैद्य जैसे लोगों की सुरक्षा व्यवस्था में कोई कमी थी , फिर भी उन लोगों की सुरक्षा नहीं हो पाई ! गृह मंत्रालय को चाहिए कि उसे उन विशिष्ट व्यक्तियों की पद के हिसाब से ( न कि नाम से ) एक सूची प्रकाशित करे और एक नियमावली भी बनाये , उसी आधार पर बिना किसी पक्षपात के उन लोगों को सुरक्षा प्रदान की जाय ! शायद ही हमारे संविधान निर्माताओं ने ऐसी कल्पना की होगी कि कुछ लोग तो उस समय के राजा महाराजाओं से भी बेहतर सुख सुविधा युक्त राजसी ठाट वाट से भी बढ़कर जीवन जीयें , और कुछ लोग अपने पेट की खातिर दिन रात खून पसीना बहाते रहें !
सरकार को इन नेताओं व विशिष्ट व्यक्तिओं की सुरक्षा के लिए एक विशेष पुलिस बल का गठन करना चाहिए ताकि वर्तमान सुरक्षा व्यवस्था आम जनता को मुहैया हो सके और जनता को यह भी पता चलता रहे की जिन लोगों को हमने अपनी सुरक्षा के लिए चुना था , अब उन्हीं लोगों के ऊपर गरीब जनता की खून पसीने

Saturday, June 13, 2009

हिंदुत्व एक जीवन पध्दति है !

हिंदुत्व किसी विशेष संप्रदाय या देश की सीमाओं में बंधा नहीं है , क्योकि यह अच्छे जीवन व आचार - विचार से जीवन जीने की एक पध्दति है ! हिंदुत्व में वैज्ञानिक तर्कों के आधार पर अपनी जीवन शैली को निर्धारित करने की पूरी छूट है , तथा इसमें कट्टरवाद के लिए कोई भी स्थान नहीं है ! अगर मैं हिंदुत्व के अंदर ढोंग पाखंड , अंधविश्वास व अन्य बुराईयों की खुले तौर पर आलोचना करता हूँ और पाता हूँ कि ये नियम हमारी जीवन शैली के लिए वैज्ञानिक आधार पर खरे नहीं उतर रहे हैं मैं उन्हें त्याग कर भी हिंदुत्व के आधार पर अपनी जीवन पध्दति निर्धारित कर सकता हूँ ! हिंदुत्व में वे सभी मानवतावादी वैश्विक तत्व विद्यमान हैं जो सत्य और अहिंसा पर चलकर जीवन जीने कि राह दिखाते हैं ! हिंदुत्व किसी भी पूर्वाग्रह या संकीर्ण भावना से ग्रसित नहीं है , और न ही किसी संप्रदाय से बंधा हुआ है ! यह सभी धर्मों के वैज्ञानिक आधार पर सत्य के अभियान में पूर्ण रूप से सहभागी है ! गाँधी जी ने भी कहा था कि हिंदुत्व की परिधि में देश में रहने वाले सभी हिंदू , मुसलमान , सिक्ख व ईसाई अर्थात सभी वर्ग व समुदाय के लोग आते हैं ! आज हिंदुत्व के इस व्यापक अर्थ और अवधारणा से राजनैतिक क्षेत्र में प्रचलित अवधारणा मेल नहीं खाती, क्योंकि यह सत्तालोलुप राजनीतिज्ञ आज भी बांटो और राज करो की नीति पर चल रहे हैं ! संरक्षणवाद, अल्पसंख्यकवाद तथा तुष्टिकरण की नीति सत्ता के गलियारों से ही निकलकर आज तथाकथित प्रगतिशील व सेकूलर कहे जाने वाले अलमबरदारों का आदर्श बनता जा रहा है , जो की भविष्य में देश के लिए सबसे बड़ा अभिशाप होगा ! हिंदुत्व के विरुध्द विषवमन करना आज धर्मनिरपेक्षता या सेक्युलरिज्म की एक पहचान सी बन गई है , और ऐसे लोग अपने को प्रगतिशील विचारधारा के ठेकेदार कहलाने में जरा भी संकोच नहीं करते ! विचार सदैव मानव कल्याण या सेवा के लिए होते हैं , और सेवा के लिए राष्ट्र धर्म को सर्वोच्च बनाना होगा तभी राष्ट्रीय अस्मिता शास्वत रहेगी ! राष्ट्रीय अस्मिता तथा स्वाभिमान को जीवंत रखने के लिए राष्ट्रीय धर्म और राष्ट्रीय संस्कृति को सर्वोपरि मानकर ही चलना होगा !

Saturday, June 6, 2009

महिला आरक्षण, आख़िर क्यों ?

जिस प्रकार कोई जादूगर जब अपने पिटारे में कुछ करता है तो वह दर्शकों का ध्यान मुख्य बातों से हटाने के लिए उन्हें अपनी बातों में उलझा लेता है , बिल्कुल ठीक उसी प्रकार हमारी केंद्रीय सरकार देश के रग रग में व्याप्त भर्ष्टाचार एवं मूलभूत समस्याओं से जनता का ध्यान हटाने के लिए महिला आरक्षण का पिटारा खोल देती है! अगर महिला आरक्षण से देश में व्याप्त भ्रष्टाचार या किसी भी समस्या का समाधान हो जाय, तो महिला आरक्षण का बिल पास होने से देश का कल्याण हो जाएगा ! किंतु महिला आरक्षण शायद किसी भी सामाजिक व आर्थिक समस्या का कोई भी स्थाई व अस्थाई समाधान नहीं है ! अगर इससे किसी एक भी समस्या का हल सम्भव होता तो हमारे गाँव की ग्राम प्रधान महिला, ब्लाक प्रमुख महिला, जिला पंचायत की अध्यक्ष महिला, राज्य की मुख्य मंत्री महिला, लोक सभा की सदस्य महिला, लोक सभा की अध्यक्ष महिला, केन्द्र में शासित दल ( यू पी ऐ ) की चेयर परसन महिला और राष्ट्र के सर्वोच्च राष्ट्र पति के पद पर आसीन भी महिला होने से यहाँ पर कोई भी समस्या नहीं रहनी चाहिए! जब कि यहाँ पर किसी भी समस्या व भ्रष्टाचार में कोई भी कमी परिलक्षित नहीं हो रही है, तथा सामाजिक समरसता व आपसी भाईचारे में भी कोई बढोत्तरी नहीं दिखाई दे रही! अगर सरकार में सामाजिक भेदभाव मिटाने की दृढ इच्छा शक्ति है, तो उसे सर्व प्रथम देश से सभी सामाजिक बीमारियों की जड़ जातिवाद को ही समाप्त कर देना चाहिए, लेकिन प्रत्येक राजनेतिक दल व सरकारें अपनी राजनेतिक रोटियां सेकने तथा अपना उल्लू सीधा करने के लिए हमेशा ही जातिवाद व समाज में भेदभाव को बढ़ाने में अपनी संपूर्ण शक्ति लगाकर ही कार्य करते देखे गए हैं! इस पर मैं दावे के साथ कह सकता हूँ की देश में सामाजिक समरसता व भेदभाव मिटाने के लिए स्कूल व अन्य सभी स्थानों पर व्यक्ति की जाति लिखना ही बंद करा दिया जाय तो निशचित रूप से १० से १५ वर्षों में भारतीय समाज से ९० प्रतिशत जातीयता का अभिशाप समाप्त हो जाएगा! महिला आरक्षण कोई अलाउद्दीन का चिराग तो है नहीं की उसे लागू करते ही सभी समस्याओं का समाधान भले ही न हो किंतु कुछ समस्याओ का निराकरण तो हो ही जाय! अगर सभी दल महिलाओं को आरक्षण देने के पक्षधर हैं , तो राष्ट्रीय व प्रांतीय स्तर के मान्यता प्राप्त सभी दलों को निर्वाचन आयोग की यह बात मान लेनी चाहिए थी , की वे ३३ प्रतिशत महिलाओं को टिकिट दें! लेकिन अभी सम्पन्न हुए लोक सभा के चुनावों में क्या किसी दल ने इसे लागू किया, शायद नहीं, फिर क्यों यह बात हर बार उठाई जाती, है की महिलाओं को आरक्षण मिलना चाहिए! अतः कोई भी राजनेतिक दल ३३ प्रतिशत महिलाओं को टिकिट देने की अनिवार्यता का संविधान संशोधन बिल क्यों पेश नहीं करता! अंत में मैं यही कहूँगा की अधिकांश राजनेतिक दल चाहते हैं की इसका वजन भी गरीव जनता के कन्धों पर ही डाला जाय, और संसद में ३३ प्रतिशत सीटें बढाकर महिलाओं को आरक्षण दे दिया जाय! इससे उन बढे हुए सदस्यों के लिए वेतन , भत्ते , आवास एवं अन्य सुविधाओं पर होने वाले करोड़ों, अरबों रुपयों का भार तो फिर भी गरीब जनता के ही खून पसीने की कमाई से ही जाएगा ! क्या कोई भी पुरूष सांसद स्वेच्छा से यह चाहेगा की उसकी लोकसभा की सीट महिला के लिए आरक्षित कर दी जाय! शरद यादव व मुलायम सिंह जैसे कुछ सांसद हैं , जो अपने दल के सर्वे सर्वा हैं , और अपनी अंतरात्मा की आवाज को सदन के अंदर या बाहर खुले दिल से कह सकते हैं! परन्तु क्या कांग्रेस या बीजेपी में से कोई भी सांसद अपने अंदर की आवाज को खुल कर कह सकता है या उसे ऐसा कहने की आजादी है, शायद नहीं! अगर कोई अपनी अन्तर आत्मा की आवाज पर कहने की हिम्मत भी करेगा तो उस पर दलगत नीतियों के विरुध्द कार्य करने का आरोप लगा दिया जाएगा , और उसकी सदस्यता भी खतरे में पड़ सकती है ! अगर सरकार चाहती है की जनतान्त्रिक तरीके से महिला आरक्षण बिल को बगैर ३३ प्रतिशत सीटें बढाये पास कराया जाय , तो उसे चाहिए की बिना किसी पार्टी ह्विप के एवं गोपनीय तरीके से तथा अंतर्रात्मा की आवाज पर मतदान कराया जाय ! किंतु हमारे यहाँ कहने को प्रजातंत्र है और बात सरकार में शीर्ष पदों पर आसीन कुछ ही लोगों की चलती है, और जो वह चाहते हैं उसे पार्टी ह्विप के द्वारा पास करा लेते हैं ! अगर आरक्षण देना ही है तो किसानों को दो , मजदूरों को दो , ग़रीबों को दो , जो की अपनी बात को संसद में सही ढंग से उठा सकें! आज संसद एवं विधान मंडलों में व उच्च पदों पर आसीन महिलाएं आरक्षण के बल पर तो नहीं आई, बल्कि स्वयं अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाकर कर ही तो इस मुकाम पर पहुँची हैं, और जो आरक्षण के बल पर पंचायत एवं स्थानीय निकायों में महिलाएं निर्वाचित होकर अपने पदों पर विराजमान हैं , अधिकांश में उनका कार्य उनके पति या बेटे ही देख रहे हैं ! अतः किसी भी आरक्षण रुपी नैया पर बैठ कर कभी भी वैतरिणी पार नहीं की जा सकती है !

Friday, May 29, 2009

आर्थिक असमानताएं, जिम्बेदार कौन

जिस समय देश आजाद हुआ था उस समय देश में ६१ प्रतिशत किसान थे तथा सकल घरेलू उत्पाद (टोटल जीडीपी) में कृषि क्षेत्र की ५४ प्रतिशत हिस्सेदारी थी, इस समय देश में ५८ प्रतिशत किसान हैं , और सकल घरेलू उत्पाद में कृषि की हिस्सेदारी घटकर मात्र २० प्रतिशत ही रह गई है! इसे इस तरह से और स्पष्ट समझा जा सकता है की अगर सकल घरेलू उत्पाद १०० मानलें तो आजादी के समय किसानों की प्रति व्यक्ति आय ८८ पैसे थी, तथा शेष ३९ प्रतिशत लोगों की प्रति व्यक्ति आय ११८ पैसे थी , और आज अन्य लोगों की प्रति व्यक्ति आय एक रुपये ९० पैसे की तुलना में किसान की प्रति व्यक्ति आय घटकर मात्र ३५ पैसे ही रह गई है, अर्थात आजादी के समय देश में किसान व अन्य लोगों की आय का अनुपात १ और १.३४ था और आज यह अनुपात १ और ५.४३ हो गया है अगर किसानों की पूर्ववत आय ८८ पैसे से तुलना करें तो अन्य लोगों की इस समय की आय लगभग १४ रुपये बैठती है , अतः पूर्व के ११८ पैसे की तुलना में अन्य लोगों की आय १२ गुना बढ़ गई है! इससे स्पष्ट है कि आजादी के बाद के वर्षों में ही देश में यह असमानता कि खाई बारह गुना और बढ़ गई! यह दिन दूनी रात चौगुनी समाज में बढती हुई आर्थिक असमानता कहीं हमें गहरे अन्धकार की ओर तो नहीं ले जा रही! इस बात पर क्या कभी देश के नीति नियंताओं ने विचार किया है! राजीव गाँधी के बाद (वीपी सिंह , नरसिंह राव , बाजपेई व मनमोहन सिंह ) की सरकारों ने इस गरीबी व अमीरी के बीच की खाई को पाटने की बजाय और गहरा ही किया है, इसके लिए पूर्ण रूप से सरकारी नीतियाँ ही जिम्बेदार हैं! इस दौरान सरकार ने किसानों के लिए बहुत सी योजनायें बनाई, किंतु उन सभी का सीधा लाभ किसानों को न मिलकर उसे बीच वाले ही ले गए, इनमें भ्रष्ट राजनायक , लूट खसोट में लिप्त सरकारी तंत्र , एन कैन प्रकारेण अपनी तिजोरियां भरने वाले पूंजीपति व सटोरिये तथा सभी प्रकार के माफियाओं ने आग में घी का ही काम किया है! प्रजातंत्र में प्रजा मालिक होती है, और मालिक अपने सुचारू कार्य सञ्चालन के लिए अपने प्रतिनिधि अर्थात अपनी सरकार का चुनाव करता है, तथा सरकार अपने कार्य के लिए प्रशासनिक मशीनरी रखती है, एवं इन सभी लोगों को कार्य करने के उपलक्ष में सार्वजनिक कोष अर्थात जनता के खजाने से नोकरी व अन्य सुविधाएँ मिलती हैं, किंतु आज विल्कुल ही उलटी गंगा बह रही है, अर्थात जो नोंकर था वह तो मालिक बन बैठा और जो मालिक था वह नौकर से भी बदतर स्थिति में हो गया! शासन, प्रशासन व अन्य सेवाओ के क्षेत्र में वेतन , भत्ते व अन्य सुविधाएँ दिन दुनी रात चौगुनी की गति से बढाये जा रहे हैं, तथा किसान और मजदूर ( वेतन, भत्ते न पाने वाले किसान और मजदूर ही तो शेष बचे ) इनको चुकाने में विभिन्न प्रकार के टैक्स व मंहगाई की मार से दब कर कराह रहा है! इसी कारण से जहाँ पर गरीब व अमीरों के मध्य अधिक चौडी खाई है, उन्ही क्षेत्रों में नक्सलवाद अपने पाँव पसारता चला जा रहा है! इसी सम्पन्नता व विपन्नता के बीच निरंतर बढती हुई खाई की अनदेखी करने के भयंकर परिणाम होंगे! भारतीय समाज में इस प्रकार दिन प्रतिदिन बढती हुई आर्थिक असमानता आखिरकार हमें कहाँ ले जायेगी! निकट भविष्य में ही इसके दुष्परिणाम हमें न सही किंतु हमारी आने वाली संतति को अवश्य ही भोगने होंगे! क्या हमारे राष्ट्र भक्तों ने देश को आजाद कराने के लिए अपनी जान की कुर्वानियाँ इसी लिए दी थीं की गरीब और गरीब होता रहे, तथा अमीर और अधिक अमीर होता चला जाय! हमारे उन राष्ट्र भक्तों की उस समय यह तमन्ना थी की "हमारा हिंद भी फूलेगा एक दिन लेकिन मिलेंगे खाक में लाखों हमारे गुलबदन पहले, हमें दुःख भोगना लेकिन हमारी नस्ल सुख पाए यह दिल में ठान लो अपने ए हिन्दी मर्दोजन पहले!" अतः इस समय यह अति आवश्यक है की हमारे देश के नीति नियंताओं को कम से कम महात्मा गौतम बुध्द के बताये गए मध्यम मार्ग का अनुशरण तो अवश्य ही करना चाहिए, उनका मध्यम मार्ग था की " वीणा के तारों को इतना ढीला मत रहने दो की वे झंकृत ही न हों, और न इतना अधिक खींचो की वे टूट ही जांय!"