हिंदुत्व किसी विशेष संप्रदाय या देश की सीमाओं में बंधा नहीं है , क्योकि यह अच्छे जीवन व आचार - विचार से जीवन जीने की एक पध्दति है ! हिंदुत्व में वैज्ञानिक तर्कों के आधार पर अपनी जीवन शैली को निर्धारित करने की पूरी छूट है , तथा इसमें कट्टरवाद के लिए कोई भी स्थान नहीं है ! अगर मैं हिंदुत्व के अंदर ढोंग पाखंड , अंधविश्वास व अन्य बुराईयों की खुले तौर पर आलोचना करता हूँ और पाता हूँ कि ये नियम हमारी जीवन शैली के लिए वैज्ञानिक आधार पर खरे नहीं उतर रहे हैं मैं उन्हें त्याग कर भी हिंदुत्व के आधार पर अपनी जीवन पध्दति निर्धारित कर सकता हूँ ! हिंदुत्व में वे सभी मानवतावादी वैश्विक तत्व विद्यमान हैं जो सत्य और अहिंसा पर चलकर जीवन जीने कि राह दिखाते हैं ! हिंदुत्व किसी भी पूर्वाग्रह या संकीर्ण भावना से ग्रसित नहीं है , और न ही किसी संप्रदाय से बंधा हुआ है ! यह सभी धर्मों के वैज्ञानिक आधार पर सत्य के अभियान में पूर्ण रूप से सहभागी है ! गाँधी जी ने भी कहा था कि हिंदुत्व की परिधि में देश में रहने वाले सभी हिंदू , मुसलमान , सिक्ख व ईसाई अर्थात सभी वर्ग व समुदाय के लोग आते हैं ! आज हिंदुत्व के इस व्यापक अर्थ और अवधारणा से राजनैतिक क्षेत्र में प्रचलित अवधारणा मेल नहीं खाती, क्योंकि यह सत्तालोलुप राजनीतिज्ञ आज भी बांटो और राज करो की नीति पर चल रहे हैं ! संरक्षणवाद, अल्पसंख्यकवाद तथा तुष्टिकरण की नीति सत्ता के गलियारों से ही निकलकर आज तथाकथित प्रगतिशील व सेकूलर कहे जाने वाले अलमबरदारों का आदर्श बनता जा रहा है , जो की भविष्य में देश के लिए सबसे बड़ा अभिशाप होगा ! हिंदुत्व के विरुध्द विषवमन करना आज धर्मनिरपेक्षता या सेक्युलरिज्म की एक पहचान सी बन गई है , और ऐसे लोग अपने को प्रगतिशील विचारधारा के ठेकेदार कहलाने में जरा भी संकोच नहीं करते ! विचार सदैव मानव कल्याण या सेवा के लिए होते हैं , और सेवा के लिए राष्ट्र धर्म को सर्वोच्च बनाना होगा तभी राष्ट्रीय अस्मिता शास्वत रहेगी ! राष्ट्रीय अस्मिता तथा स्वाभिमान को जीवंत रखने के लिए राष्ट्रीय धर्म और राष्ट्रीय संस्कृति को सर्वोपरि मानकर ही चलना होगा !
Saturday, June 13, 2009
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