एक बार मैं बस के इंतजार में अलीगढ बस स्टैंड पर खड़ा था, तभी एक तरफ एक जेब कतरे को कुछ लोगों ने पकड़ लिया और उसे इतना पीटा कि उसके मुंह से खून आने लगा, और उसे अधमरा करके छोड़ दिया गया! तभी मेरे मन में कई विचार आने लगे कि इसे तो चन्द पैसों के चोरी करने के प्रयास के जुर्म मे ही इतनी कठोर सजा दे दी, किन्तु जो लोग लाखों और करोड़ों क़ी चोरी भव्य एवं आलीसान भवनों में बैठ कर करते हैं , शायद हम जैसे लोग ही उन्हें महिमा मंडित करने मे कोई भी कोर कसर नहीं छोड़ते, तथा उन्हें योग्य, कुशल, बुद्धिमान, कर्मठ, चतुर एवं न जाने कितनी उपाधियों से विभूषित करते रहते हैं तथा उनके स्वागत के लिए फूल मालाएं लिए खड़े रहते हैं! देखिये यह कैसी विडंबना है, कि जिस एक व्यक्ति ने समाज के एक व्यक्ति क़ी जेब में से चन्द पैसे चुराने का प्रयास भर किया उसे इतनी बड़ी सजा तुरंत दे दी गई और दूसरी तरफ जिन लोगों के सार्वजनिक धन क़ी चोरी करने के कारण न जाने कितने मासूम बच्चे भूख एवं बीमारी के कारण तड़प तड़प कर मर जाते हैं , और उसी धन की कमी के कारण न जाने कितने ही बच्चे अशिच्छित रह जाते हैं, तथा न जाने देश की कितनी ही जनसँख्या गरीबी एवं नारकीय जीवन से तंग आकर वर्त्तमान व्यवस्था के विरुद्ध हथियार उठा लेने को विवस हो जाती है , जिन्हें हम आज नक्सली कहते हैं, और आज इसी नक्सली हिंसा में कितने ही निर्दोष लोगों की जाने जा रहीं हैं! इन बातों से स्पष्ट होता है कि जब इन सभी बातों क़ी जड़ में प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से आर्थिक अपराधी ही हैं, तो फिर इन आर्थिक अपराधियों को म्रत्यु दंड या आजीवन कारावास का प्राविधान क्यों नहीं किया जाता, यह प्रश्न अक्सर मस्तिष्क में कोंधता रहता है!
तरह तरह के अपराध समाज में प्राचीन कल से ही होते आ रहे हैं, किन्तु आज एक नए किस्म के अपराधियों का उदय हुआ है, जिन्हें आज का समाज बुरी द्रष्टि से नहीं देखता बल्कि वे लोग कुछ दिन संचार माध्यमों में सुर्ख़ियों में रहने के कारण ख्याति अर्जित करते हैं और अंत में समाज में अपना महत्वपूर्ण स्थान बनाकर अयासी जीवन व्यतीत करते हैं! अगर हम अपनी तर्क शक्ति का प्रयोग करके देखें तो यह आर्थिक अपराधी उन चोर, उचक्के , डाकू, बदमाश एवं जेब कतरों आदि से ज्यादा खतरनाक तथा देश द्रोही होते हैं ! परम्परागत अपराधी एक विशेष व्यक्ति को ही हानि पहुँचाते हैं, और ये आधुनिक आर्थिक अपराधी सार्वजनिक धन का अपहरण करके संपूर्ण समाज एवं राष्ट्र को ही हानि पहुँचाते हैं, जिसका प्रभाव एक लम्बे समय तक पूरे समाज एवं राष्ट्र को भुगतना पड़ता है ! एक चोर, जेब कतरा या डाकू उसी व्यक्ति के धन का हरण करता है जिसके पास धन होता है , किन्तु ये आर्थिक अपराधी उस सार्वजनिक धन का अपहरण करते हैं जो कि गरीब , असहाय व निर्बल वर्ग के उत्थान के साथ साथ सार्वजनिक कल्याण के कार्यों में लगाया जाता , अतः हम कह सकते हैं कि ये लोग गरीब एवं बेसहारा लोगों के मुंह का निवाला, शिक्षा , तन ढकने के कपडे ,बीमार लोगों की दवाएं और न जाने क्या क्या छीन कर अपनी तिजोरियां भरकर समाज में राजनेतिक सम्मान एवं अपना दबदबा कायम करते हैं, क्या इन राष्ट्रीय संसाधनों की खुली लूट को जायज ठहराने वाले लोग अपने आप में एक बड़ा अपराध नहीं कर रहे हैं
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