Sunday, May 19, 2013

रहिमन पानी राखिये

रहिमन पानी राखिये, बिन पानी सब सून ; पानी गए न ऊबरे मोती , मानुष ,चून ;
अगर किसी की आँख का पानी चला गया तो समझा जाता है कि उसकी लाज शर्म चली गयी 

Tuesday, April 3, 2012

कांग्रेस की हार के जिम्बेदर

दिगविजय  सिंह जैसे कांग्रेस के सिपहसालारों ने ही उत्तर प्रदेश में कांग्रेस की लुटिया डुबोई; राजीव गाँधी  अपनी मेहनत  से तीन चार दिन में जितना काम करते थे, दिगविजयसिंह जेसे  पुरोधा अपने मुखार   विन्दु से एक शब्द में ही सब पर पानी फेर देते थे;  कांग्रेस के किसी  भी व्यक्ति ने भ्रष्टाचार, कालेधन पर एक शब्द भी बोलना  उचित नहीं समझा ; 

Wednesday, November 2, 2011

Digvijay

दिगविजय सिंह ke   प्रवचन

Thursday, January 27, 2011

भ्रष्टाचार से आर्थिक असमानताएं चरम पर

मुम्बई के एक उद्दोगपति ने ४५०० करोड़ रुपये की लागत  से अपने रहने के लिए एक मकान बनवाया  है और महात्मा गाँधी ने सन १९३६ में मध्य भारत के एक छोटे से ग्राम सेवाग्राम (वर्धा, महाराष्ट्र) में अपने रहने के लिए एक कुटिया इस शर्त पर बनवाई थी कि इसकी कुल लागत एक सौ रुपये से अधिक नहीं होनी चाहिए, और उसी कुटिया में अपने जीवन के महत्वपूर्ण दस वर्ष गुजारे ही नहीं बल्कि हिंदुस्तान के राष्ट्रीय स्वतंत्रता आन्दोलन को  पूर्ण रूप से दिशा देने के साथ साथ राष्ट्र उत्थान के हर क्षेत्र में महत्वपूर्ण बुलंदियां हांसिल करते रहे और उसी छोटी सी कुटिया में रहते हुए  दुनियां की सबसे बड़ी ताकत से राष्ट्र को आजाद कराया !कल्पना कीजिये कि "जिस तरह से देश में आज  विकास वृद्धि- दर का आंकलन बिना मंहगाई को लगाये किया जाता है" उसी हिसाब से गाँधी जैसी ४५ करोड़ कुटियाएँ  उस एक व्यक्ति के भवन की लागत से बनाई जा सकती हैं , जिसमें देश के हर दो से तीन व्यक्तियों  के रहने के लिए  गाँधी जैसी कुटियाएँ काफी होंगी !  दूसरी तरफ भ्रष्टाचार का खेल देखिये कि जिस २ जी स्पैक्ट्रम के आवंटन  में  राष्ट्र को १.७६ लाख करोड़ रुपये का चूना लगाया गया, उसी धनराशि से १७ से १८ लाख रुपये की लागत से १० लाख  प्राइमरी विद्यालय बन जायेंगे, जो कि देश के छै: लाख गावों के साथ साथ हर छोटे बड़े पुरवे में एक बन जायेगा, या  १७६ लाख रुपये की लागत से पूरे देश में एक लाख अस्पताल बन जायेंगे,  अतः इस एक मकान की लागत में संपूर्ण देश में हर छै: गांवों के मध्य एक अस्पताल बन जायेगा! पहले जब हम प्राइमरी स्कूल में पढ़ते थे तो इतिहास में पढाया जाता था कि हमारा देश सोने की चिड़िया थी जिसे विदेसी आक्रान्ता एवं अंग्रेज लूटकर ले गए , किन्तु विडंबना  देखिये कि आज  अपने ही देश के काले अंग्रेज देश के धन को लूटकर विदेशी बैंकों में जमा कर रहे हैं! एक अनुमान के अनुसार हमारे देश के भ्रष्ट एवं बेईमान काले अंग्रेजों का विदेशी बैंकों में १४०० अरब डालर तक की काली कमाई की धनराशि जमा है ! १४०० अरब डालर का मतलब ६३००० अरब रुपये !इस समय अगर हम देश की कुल जनसँख्या १२६ करोड़ मानकर चलें तो प्रति व्यक्ति (आज जन्म लेने वाला नवजात शिशु भी ) के हिस्से में ५० हजार रुपये आ जायेंगे !यह है भारतीय जनतंत्र का हाल,यहाँ पर जन  तो केवल पाँच वर्ष में एक वार ही वोट डालने के लिए  आता   है और तंत्र पूरे पाँच वर्ष अपना खेल खेलता रहता है! जरा इनके विषय में सोचिये कि इन लोगों की सोच और मानसिक स्टार कैसा होगा जो  किसान,मजदूर एवं देश के  गरीब मेहनतकश लोगों के खून पसीने की  गाढ़ी  कमाई को यह चोर उचक्कों से भी गए गुजरे भ्रष्टतम  लोग अपनी काली करतूतों के रूप में विदेशी बैंकों में जमा करने में जरा भी शर्म महशूस नहीं करते ! इस भ्रष्टाचार के कारण ही देश में आर्थिक विषमतायें दिनों दिन बढ़ती ही जा रही हैं , एक तरफ देश की बहुसंख्यक आबादी २० रुपये प्रतिदिन पर गुजर करने को मजबूर है , किसान आत्म हत्याएं कर रहा है! गरीबी का आलम यह है कि लोग विवश होकर व्यवस्था (तंत्र ) के विरुद्ध हतियार उठाने को मजबूर हो रहे हैं, कहावत है  कि "मरता सो क्या न करता" ! आज जो लोग व्यवस्था के इन अत्याचारों का विरोध करते हैं, उन्हें नक्सली करार  देकर  फर्जी मुठभेड़ों में मर गिराया जाता है या फिर सामाजिक कार्यकर्त्ता विनायक सेन की तरह जेल में डाल दिया जायेगा और अगर कुछ कहा भी तो अरुंधती राय की तरह देश द्रोह का मुकद्दमा चलाया जायेगा ! 

Wednesday, December 29, 2010

आर्थिक अपराधियों को कठोरतम सजा

एक बार मैं बस के इंतजार में अलीगढ बस स्टैंड पर खड़ा था,  तभी  एक तरफ एक जेब कतरे को कुछ लोगों ने पकड़ लिया और उसे इतना पीटा कि उसके मुंह से खून आने लगा, और उसे अधमरा करके छोड़ दिया गया!  तभी मेरे मन में कई विचार आने लगे कि इसे तो चन्द पैसों के चोरी करने के प्रयास के जुर्म मे ही इतनी कठोर सजा दे दी,   किन्तु जो लोग लाखों और करोड़ों क़ी चोरी  भव्य एवं आलीसान भवनों में बैठ कर करते हैं ,  शायद हम जैसे  लोग ही उन्हें महिमा मंडित करने मे कोई  भी कोर कसर  नहीं छोड़ते,  तथा उन्हें योग्य, कुशल, बुद्धिमान, कर्मठ, चतुर  एवं न जाने कितनी उपाधियों से विभूषित करते रहते हैं तथा उनके स्वागत के लिए फूल मालाएं लिए खड़े रहते हैं! देखिये  यह कैसी विडंबना है,  कि जिस एक व्यक्ति ने समाज के एक व्यक्ति क़ी जेब में से चन्द पैसे चुराने का प्रयास भर किया उसे इतनी बड़ी सजा  तुरंत दे दी गई  और  दूसरी तरफ जिन लोगों के  सार्वजनिक धन क़ी चोरी करने के कारण न जाने कितने मासूम बच्चे भूख एवं बीमारी के कारण तड़प तड़प कर मर जाते हैं ,  और  उसी   धन की कमी के कारण  न जाने कितने ही बच्चे  अशिच्छित  रह जाते हैं,  तथा  न जाने देश की कितनी ही जनसँख्या गरीबी एवं नारकीय जीवन से तंग आकर  वर्त्तमान  व्यवस्था  के विरुद्ध हथियार उठा लेने को विवस हो जाती  है , जिन्हें हम  आज  नक्सली कहते हैं, और आज इसी  नक्सली हिंसा में कितने ही निर्दोष लोगों की जाने जा रहीं हैं!  इन बातों से स्पष्ट  होता है कि जब इन सभी बातों  क़ी जड़ में प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष  रूप से आर्थिक  अपराधी ही हैं, तो फिर इन  आर्थिक अपराधियों को म्रत्यु दंड या आजीवन कारावास का प्राविधान क्यों नहीं किया जाता, यह प्रश्न अक्सर मस्तिष्क में कोंधता रहता है!
तरह तरह के अपराध समाज में प्राचीन कल से ही होते आ रहे हैं, किन्तु आज एक नए किस्म के अपराधियों का उदय हुआ है, जिन्हें आज का समाज बुरी द्रष्टि से नहीं देखता बल्कि वे लोग कुछ दिन संचार माध्यमों में सुर्ख़ियों में  रहने के कारण  ख्याति अर्जित करते हैं और अंत में समाज में अपना महत्वपूर्ण स्थान बनाकर अयासी जीवन व्यतीत करते हैं! अगर हम अपनी तर्क शक्ति का प्रयोग करके देखें तो यह आर्थिक अपराधी उन चोर, उचक्के , डाकू, बदमाश एवं जेब कतरों आदि  से  ज्यादा  खतरनाक तथा देश द्रोही  होते हैं !   परम्परागत  अपराधी एक विशेष व्यक्ति को ही हानि पहुँचाते   हैं, और ये आधुनिक आर्थिक अपराधी सार्वजनिक धन  का अपहरण करके संपूर्ण समाज एवं राष्ट्र  को ही हानि पहुँचाते हैं, जिसका प्रभाव एक लम्बे समय  तक पूरे समाज एवं राष्ट्र को भुगतना पड़ता है ! एक चोर, जेब कतरा या डाकू  उसी व्यक्ति के धन का हरण  करता है जिसके पास धन होता है , किन्तु ये आर्थिक अपराधी उस सार्वजनिक धन का अपहरण  करते  हैं जो कि गरीब , असहाय व निर्बल वर्ग के उत्थान के साथ साथ सार्वजनिक कल्याण के कार्यों  में लगाया जाता , अतः हम कह सकते हैं कि ये लोग गरीब एवं बेसहारा लोगों के मुंह का निवाला, शिक्षा , तन ढकने के कपडे ,बीमार लोगों की दवाएं और न जाने क्या क्या  छीन कर अपनी तिजोरियां भरकर समाज में राजनेतिक सम्मान एवं अपना दबदबा कायम करते हैं, क्या इन राष्ट्रीय संसाधनों की खुली लूट को जायज  ठहराने वाले लोग अपने आप में एक बड़ा अपराध नहीं कर रहे हैं         

Thursday, July 15, 2010

आनर किलिंग

आज से कुछ समय पहले की बात है एक व्यक्ति की जवान लड़की किसी लडके के साथ चली गई, तब उसके पिता ने कहा कि मेरे परिवार पर आज तक कोई दाग नहीं था, किन्तु इस लड़की ने मुझे गाँव व क्षेत्र मा मुंह दिखाने लायक नहीं छोड़ा, अब मैं किस मुंह से घर से बाहर निकलूं, बतातें कि १०-१५ दिन के बाद उसकी अर्थी ही बाहर निकली ! किन्तु अब समय बदल गया है और नए बुद्धिजीवी और तथा कथित समाज सुधारक लोग, इन बातों पर मर मिटने को झूंटी शान कहते हैं, मैं इन लोगों से यह जरूर जानना चाहता हूँ कि फिर सच्ची शान कोनसी है !  क्या रिश्वत से गरीबों का खून चूस कर बड़े बड़े महल और भारी भरकम नामी और बेनामी सम्पति अर्जित करना ही सच्ची  शान है, क्या चुनाव जीतकर अपनी सम्पति में हजारों गुना इजाफा करना ही सच्ची शान है, क्या उद्योगों से कर चोरी करके व मजदूरों का सस्ता श्रम लेकर अकूत धन दौलत इकट्ठी करना ही सच्ची शान है !एक गरीब आदमी के बच्चे  को उठाकर उसके अंगों की तस्करी  करना, फिर भी पुलिस उसकी रिपोर्ट न लिखे और एक उच्च पदस्त अधिकारी के कुत्ते खो जाने पर वहां की पुलिस पूरे सूबे की खाक छानती फिरे , और अपना कुत्ता तलास करना ही  क्या उन लोगों की सच्ची शान है, क्या जान-पूछकर जन्म से पहले ही कन्याओं की हत्या करना ही सच्ची शान है! नई दिल्ली की किसी भी पास कालोनी का सर्वे कराकर देख लीजिये वहां का लिंग अनुपात निरंतर गिरता ही चला जा रहा है, क्योंकि इन कोलोनियों मैं सच्ची शान वाले लोग निवास करते हैं ! आज भी अधिकांश स्कूलों में जो प्रार्थना बोली जाती है , उसकी एक पंक्ति है " निज आन मान मर्यादा का प्रभु ध्यान रहे अभिमान रहे"! मैं पुनः उन बुद्धिजीवियों से यह जानना चाहता हूँ कि आखिर वे कोनसी मर्यादाएं हैं जिनका कि इस ईश बंदना में भी जिक्र किया गया है ! क्या वे कानूनी मर्यादाएं हैं या सामाजिक मर्यादाएं!      

Saturday, June 26, 2010

कल्याणकारी कार्यक्रमों से गरीबी बढती है

बजट के कल्याणकारी कार्यक्रमों से धनी व संपन्न वर्ग के पास अधिक पैसा पहुँचता है  ! जितने भी सरकारी कल्याणकारी कार्यक्रम हैं वे सभी गरीव , निर्धन , वेसहरा लोंगों के लिए संचालित किये जाते हैं किन्तु उनका लाभ हमेशा संपन्न वर्ग ही उठाता है! जब भी देश के वित्त मंत्री गरीब , मजदूर , किसान व वेसहरा लोग के कल्याण के लिए किसी भी योजना कि घोषणा करते हैं, तो ऐसा प्रतीत होता है कि इस बार तो एन लोग की सूखी हड्डियों में कुछ तो रक्त का संचार होगा ही, लेकिन होता वही है लो पहले से होता चला आ रहा है! इसका सीधा सा अभिप्राय शीर्स पर विराजमान लोग के कथनों से इस प्रकार निकला जा सकता है! पूर्व प्रधान मंत्री राजीव गाँधी से लेकर कांग्रेस की नैया के खेवनहार राहुल गाँधी तक ने यही कहा है कि जब हम ऊपर से १०० पैसा भेजते हैं तो वह मूल व्यक्ति या लाभार्थी तक पहुँचते पहुंचते मात्र १५ पैसा ही रह जाता है ! इससे स्पष्ट है कि ८५ पैसा कहीं न कहीं भ्रष्टाचार कि भेंट चढ़ जाता है! अब आप  उन्ही के अर्थशास्त्र से स्वयं ही हिसाब लगा लीजीए कि किसी भी कल्याणकारी योजना के लिए १०० पैसे तो जनता से ही इकट्ठा किये जाते हैं ! यहाँ अगर हम उच्च वर्ग व उच्च मध्य वर्ग को अधिकतम कुल जनसँख्या का २० प्रतिशत मान लें और आम जनता को ८० प्रतिशत माने! जब कि टेक्स तो हर व्यक्ति देता है , अगर कोई कारखाने वाला है तो वह टैक्स को उत्पादन पर ही डाल देता है, जिसका भुकतान आम उपभोक्ता को ही करना पड़ता है! अतः गरीब व उन लोगों को, जिनके लिए योजना चलाई जा रही है उनका अंशदान तो हुआ ८० पैसे तथा उन्हें मिले मात्र १५ पैसे ! अतः जब तक हमारी सरकार इन ८५ पैसों को खोजकर सही जगह पर नहीं पहुँचाती, तब तक सरकार क़ी सभी कल्याणकारी योजनायें बेमानी साबित होंगी !