रहिमन पानी राखिये, बिन पानी सब सून ; पानी गए न ऊबरे मोती , मानुष ,चून ;
अगर किसी की आँख का पानी चला गया तो समझा जाता है कि उसकी लाज शर्म चली गयी
अगर किसी की आँख का पानी चला गया तो समझा जाता है कि उसकी लाज शर्म चली गयी
Girdhari Lal,
आज से कुछ समय पहले की बात है एक व्यक्ति की जवान लड़की किसी लडके के साथ चली गई, तब उसके पिता ने कहा कि मेरे परिवार पर आज तक कोई दाग नहीं था, किन्तु इस लड़की ने मुझे गाँव व क्षेत्र मा मुंह दिखाने लायक नहीं छोड़ा, अब मैं किस मुंह से घर से बाहर निकलूं, बतातें कि १०-१५ दिन के बाद उसकी अर्थी ही बाहर निकली ! किन्तु अब समय बदल गया है और नए बुद्धिजीवी और तथा कथित समाज सुधारक लोग, इन बातों पर मर मिटने को झूंटी शान कहते हैं, मैं इन लोगों से यह जरूर जानना चाहता हूँ कि फिर सच्ची शान कोनसी है ! क्या रिश्वत से गरीबों का खून चूस कर बड़े बड़े महल और भारी भरकम नामी और बेनामी सम्पति अर्जित करना ही सच्ची शान है, क्या चुनाव जीतकर अपनी सम्पति में हजारों गुना इजाफा करना ही सच्ची शान है, क्या उद्योगों से कर चोरी करके व मजदूरों का सस्ता श्रम लेकर अकूत धन दौलत इकट्ठी करना ही सच्ची शान है !एक गरीब आदमी के बच्चे को उठाकर उसके अंगों की तस्करी करना, फिर भी पुलिस उसकी रिपोर्ट न लिखे और एक उच्च पदस्त अधिकारी के कुत्ते खो जाने पर वहां की पुलिस पूरे सूबे की खाक छानती फिरे , और अपना कुत्ता तलास करना ही क्या उन लोगों की सच्ची शान है, क्या जान-पूछकर जन्म से पहले ही कन्याओं की हत्या करना ही सच्ची शान है! नई दिल्ली की किसी भी पास कालोनी का सर्वे कराकर देख लीजिये वहां का लिंग अनुपात निरंतर गिरता ही चला जा रहा है, क्योंकि इन कोलोनियों मैं सच्ची शान वाले लोग निवास करते हैं ! आज भी अधिकांश स्कूलों में जो प्रार्थना बोली जाती है , उसकी एक पंक्ति है " निज आन मान मर्यादा का प्रभु ध्यान रहे अभिमान रहे"! मैं पुनः उन बुद्धिजीवियों से यह जानना चाहता हूँ कि आखिर वे कोनसी मर्यादाएं हैं जिनका कि इस ईश बंदना में भी जिक्र किया गया है ! क्या वे कानूनी मर्यादाएं हैं या सामाजिक मर्यादाएं!