बजट के कल्याणकारी कार्यक्रमों से धनी व संपन्न वर्ग के पास अधिक पैसा पहुँचता है ! जितने भी सरकारी कल्याणकारी कार्यक्रम हैं वे सभी गरीव , निर्धन , वेसहरा लोंगों के लिए संचालित किये जाते हैं किन्तु उनका लाभ हमेशा संपन्न वर्ग ही उठाता है! जब भी देश के वित्त मंत्री गरीब , मजदूर , किसान व वेसहरा लोग के कल्याण के लिए किसी भी योजना कि घोषणा करते हैं, तो ऐसा प्रतीत होता है कि इस बार तो एन लोग की सूखी हड्डियों में कुछ तो रक्त का संचार होगा ही, लेकिन होता वही है लो पहले से होता चला आ रहा है! इसका सीधा सा अभिप्राय शीर्स पर विराजमान लोग के कथनों से इस प्रकार निकला जा सकता है! पूर्व प्रधान मंत्री राजीव गाँधी से लेकर कांग्रेस की नैया के खेवनहार राहुल गाँधी तक ने यही कहा है कि जब हम ऊपर से १०० पैसा भेजते हैं तो वह मूल व्यक्ति या लाभार्थी तक पहुँचते पहुंचते मात्र १५ पैसा ही रह जाता है ! इससे स्पष्ट है कि ८५ पैसा कहीं न कहीं भ्रष्टाचार कि भेंट चढ़ जाता है! अब आप उन्ही के अर्थशास्त्र से स्वयं ही हिसाब लगा लीजीए कि किसी भी कल्याणकारी योजना के लिए १०० पैसे तो जनता से ही इकट्ठा किये जाते हैं ! यहाँ अगर हम उच्च वर्ग व उच्च मध्य वर्ग को अधिकतम कुल जनसँख्या का २० प्रतिशत मान लें और आम जनता को ८० प्रतिशत माने! जब कि टेक्स तो हर व्यक्ति देता है , अगर कोई कारखाने वाला है तो वह टैक्स को उत्पादन पर ही डाल देता है, जिसका भुकतान आम उपभोक्ता को ही करना पड़ता है! अतः गरीब व उन लोगों को, जिनके लिए योजना चलाई जा रही है उनका अंशदान तो हुआ ८० पैसे तथा उन्हें मिले मात्र १५ पैसे ! अतः जब तक हमारी सरकार इन ८५ पैसों को खोजकर सही जगह पर नहीं पहुँचाती, तब तक सरकार क़ी सभी कल्याणकारी योजनायें बेमानी साबित होंगी !
Saturday, June 26, 2010
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