कुछ समय से प्रिंट मीडिया हो या इलेक्ट्रोनिक मीडिया सभी मैं खाप पंचायतों को एक तरह से खलनायक की भूमिका मैं प्रस्तुत किया जा रहा है! शहर के वातानुकूलित कमरों में बैठे हुए वे बुद्धिजीवी जिनका ग्रामीण परिवेश से कोसों तक का कोई रिश्ता नहीं होगा तथा आधुनिक शहरी रीति रिवाजों एवं पाष्चात्य सभ्यता के आधार पर एक विशेष जाति के सगोत्र विवाहों एवं एक ही गाँव में विवाहों को अपनी बुद्धिमत्ता के आधार पर जायज ठहरा रहे हैं ! मैं उनसे मात्र इतना ही जानना चाहता हूँ कि क्या उन्होंने कभी गाँव में रहकर उनकी रीति रिवाज एवं परम्पराओं को नजदीक से देखा है ! अगर देखा है तो वे बुद्धिजीवी उस जाति में एक साल में मात्र दस सगोत्र विवाह ( चाहे प्रेम विवाह हों या दूसरे ) ही गिनवा दें , और जब वे हरियाणा, पश्चिमी उत्तर प्रदेश और राजस्थान में मिलाकर दस सगोत्र विवाह व गाँव से गाँव में विवाह नहीं गिनवा पायें तो उन्हें इस प्रकार की आलोचना करने का कोई भी अधिकार नहीं रह जाता है , इस समय मुझे किसी गाने की एक पंक्ति याद आ रही है कि " पायल के गुणों का इल्म नहीं , झंकार की बातें करते हैं " मैं उन बुद्धिजीवियों से एक वार पुनः आग्रह करना चाहता हूँ कि पहले वे उन गांवों में जाएँ और वहां रहकर उनकी रीति रिवाज व परम्पराओं तथा खाप पंचायतों के फैसलों को नजदीक से जाकर देखें और विचार करें कि इनमें क्या क्या बुराइयाँ और क्या क्या अच्छी बातें हैं , तब कहीं जाकर अपनी राय स्पष्ट करें ! इन खाप पंचायतों में उस वर्ग के बुद्धिजीवी , प्रतिष्टित तथा अनुभवी वे लोग जिन्हें उस वर्ग का भारी समर्थन प्राप्त होता है , किसी पीड़ित पक्ष के बुलाने पर इकट्ठा होते हैं और काफी विचार विमर्स के बाद ही किसी अंतिम फैसले पर पहुँचते हैं ! सगोत्र का सीधा सा अभिप्रायः है के दस बारह पीढियां पहले से वे सभी एक ही पूर्वज की संताने हैं , इस प्रकार विशाल ह्रदय से देखें तो वे सभी युवक / युवतियां आपस में भाई - बहन हुए और एक ही गाँव ( ओसतन २००-३०० परिवारों का समूह ) में रहने वाले सभी जातियों के युवक / युवतियां भी भाई - बहन ही हुए और हिन्दू धर्म में भाई - बहन की शादी होना कहाँ तक उचित है ! शहरी परिवेश की बात दूसरी है , वहां तो विभिन्न जाति , धर्म व परम्पराओं के लाखों लोग रहते हैं !
Tuesday, May 25, 2010
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