Wednesday, June 2, 2010

जातीय जनगणना का विरोध क्यों

कुछ दिनों से जातीय आधार पर की जाने वाली जनगणना का विरोध मीडिया एवं समाचार पत्रों में किसी न किसी रूप में छाया हुआ है ! इनलोगों की बेतुकी बातों से ऐसा आभास होता है कि अगर देश की जनगणना जातीय आधार पर की गई तो देश का बहुत बड़ा अनर्थ हो जायेगा ! ऐसा नहीं है कि ये लोग जाति विहीन समाज की संकल्पना में विश्वास रखते हों बल्कि ये एक सोची समझी रणनीति के तहद राजनीतिक विचारधारा से किया जा रहा प्रोपेगंडा है ! पहले तो मैं इन लोगों को यह बता देना चाहता हूँ कि कोई भी देश या राष्ट्र कभी भी जातियों के आधार पर विभाजित नहीं हुआ या हो सकता है , बल्कि देश , राष्ट्र यहाँ तक कि राज्य का विभाजन या मांग धर्म या भाषा के आधार हो सकती है ! अगर ये लोग जाति विहीन समाज की संरचना चाहते हैं , तो इन्हें सर्व प्रथम यह बात रखनी चाहिए थी कि स्कूलों या कहीं भी और किसी भी जगह जाति का कोई भी कालम ही नहीं होना चाहिए , और जब जाति का कोई भी कालम ही नहीं होगा तो बहुत सारी समस्याएं तो स्वतः ही हल हो जाएँगी ! जब अनुसूचित जाति व अनुसूचित जन जातियों की गणना से कोई पहाड़ नहीं गिरा तो पिछड़ी जातियों की गणना से ही कौनसा बज्रपात होंने वाला है ! हमारे यहाँ पर सेवाओं के क्षेत्र में हो पंचायती राज संस्थाओं में प्रतिनिधि चुनने में , सभी में पिछड़ी जातियों के लिए आरक्षण की व्यवस्था है , और इन पिछड़े वर्ग की जातियों को आरक्षण २७ प्रतिशत इस आधार पर दिया गया था की १९३१ की जनगणना या सर्वे में उनकी जनसँख्या ५४ प्रतिशत थी ! जरा विचार कीजिये की ८० वर्ष पुराने उन आंकड़ों पर कैसे विस्वास कर लिया जाय , जब भारत , पाकिस्तान और बंगला देश एक ही थे ! अब यह भी तो कहा जा सकता है की अन्य पिछड़ा वर्ग की आबादी ही २६ प्रतिशत है , तो फिर आप उन्हें २७ प्रतिशत आरक्षण क्यों दे रहे हो ! जब आपके पास कोई विस्वसनीय आंकडे ही नहीं हैं तो फिर आप किस आधार पर आरक्षण दे रहे हो !

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